भारत की संविधान सभा की समिति क्या है इसके बारे मे विस्तार से आसान शब्दों मे आसान भाषा मे जाने इससे जुड़े जरूरी सवाल जवाब
परिचय: संविधान सभा क्या थी?
भारत की संविधान सभा (Constituent Assembly) वह संस्था थी जिसने भारत का संविधान बनाने का कार्य किया। इस सभा की स्थापना 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत को एक संविधान देना था जो सभी नागरिकों को समान अधिकार, स्वतंत्रता और न्याय सुनिश्चित करे।
संविधान सभा में कुल 299 सदस्य थे, जो विभिन्न प्रांतों और समुदायों से चुने गए थे। इन सदस्यों में नेता, वकील, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, महिलाएं और कई बुद्धिजीवी शामिल थे।
संविधान सभा की समितियाँ (Committees of the Constituent Assembly)
संविधान बनाने का कार्य बहुत जटिल और विस्तृत था। इसलिए काम को आसान और व्यवस्थित बनाने के लिए संविधान सभा ने कुल 22 समितियाँ बनाई थीं। इन समितियों को दो भागों में बाँटा जा सकता है:
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मुख्य समितियाँ (Main Committees)
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उप-समितियाँ (Minor or Advisory Committees)
मुख्य समितियाँ (Main Committees)
संविधान निर्माण के प्रमुख ढांचे से जुड़ा कार्य इन समितियों के ज़िम्मे था। मुख्य समितियाँ निम्नलिखित थीं:
क्रम | समिति का नाम | अध्यक्ष |
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1 | प्रारूप समिति (Drafting Committee) | डॉ. भीमराव अंबेडकर |
2 | संघीय संविधान समिति (Union Constitution Committee) | जवाहरलाल नेहरू |
3 | प्रांतीय संविधान समिति (Provincial Constitution Committee) | सरदार पटेल |
4 | रिपोर्टिंग समिति (Union Powers Committee) | जवाहरलाल नेहरू |
5 | अल्पसंख्यक समिति (Minorities Committee) | सरदार पटेल |
6 | मौलिक अधिकार समिति (Fundamental Rights Committee) | जे. बी. कृपलानी |
7 | सलाहकार समिति (Advisory Committee on Fundamental Rights, Minorities, and Tribal Areas) | सरदार पटेल |
ये समितियाँ विशेष मुद्दों पर ध्यान देती थीं, जैसे जनजातीय क्षेत्र, नागरिकता, भाषा आदि। कुछ प्रमुख उप-समितियाँ थीं:
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नागरिकता समिति (Chairman: नेहरू)
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भाषा समिति (Chairman: राजेन्द्र प्रसाद)
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अनुसूचित जनजातियों पर समिति
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महिला अधिकार समिति
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रियासतों से संबंधित समिति
इन समितियों की आवश्यकता क्यों थी?
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संविधान निर्माण का कार्य बहुत विशाल था।
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हर विषय पर विशेषज्ञों की राय ज़रूरी थी।
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समय और संसाधन की बचत के लिए अलग-अलग समूहों को जिम्मेदारी दी गई।
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हर समुदाय, वर्ग और क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए।
प्रारूप समिति (Drafting Committee) – सबसे महत्वपूर्ण समिति
अब आइए हम प्रारूप समिति को विस्तार से समझें क्योंकि यह समिति सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
गठन:
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प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को किया गया था।
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इसका कार्य था – सभी प्रस्तावों, सुझावों और रिपोर्टों को मिलाकर संविधान का अंतिम मसौदा (Draft) तैयार करना।
अध्यक्ष:
डॉ. भीमराव अंबेडकर – यह भारत के संविधान के मुख्य शिल्पकार माने जाते हैं। वे एक महान विधिवेत्ता और समाज सुधारक थे। उन्होंने संविधान को न्याय, समानता और स्वतंत्रता का आधार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रारूप समिति के अन्य सदस्य:
सदस्य का नाम | क्षेत्र |
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डॉ. भी. आर. अंबेडकर (अध्यक्ष) | समाज सुधारक और विधिवेत्ता |
एन. गोपालस्वामी आयंगर | पूर्व प्रशासक |
अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर | प्रसिद्ध वकील |
के. एम. मुंशी | लेखक और संविधानविद |
सैयद मोहम्मद सादुल्ला | वकील और राजनीतिज्ञ |
बी. एल. मित्तल | बाद में इस्तीफा दिया |
टी. टी. कृष्णमाचारी | बाद में शामिल हुए |
कार्य और योगदान:
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संविधान सभा द्वारा लिए गए निर्णयों के आधार पर संविधान का प्रारूप तैयार करना।
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लंबी चर्चाओं, बहसों और सुझावों को मिलाकर संविधान का अंतिम रूप देना।
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भारतीय समाज की विविधता को ध्यान में रखते हुए समावेशी और संतुलित संविधान बनाना।
चुनौतियाँ:
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अनेक भाषाएँ, धर्म, जातियाँ और परंपराओं को ध्यान में रखना।
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ब्रिटिश कानून और भारतीय संस्कृति के बीच संतुलन बनाना।
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भविष्य की जरूरतों का अनुमान लगाकर संविधान को लचीला और स्थायी बनाना।
संविधान सभा की समितियों के उद्देश्य (Objectives)
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संविधान का ढांचा तैयार करना – जिसमें शासन व्यवस्था, नागरिक अधिकार और न्याय की व्यवस्था हो।
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हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करना – जैसे महिलाओं, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों व जनजातियों की।
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समय की बचत और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विशेषज्ञों को जिम्मेदारियाँ देना।
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लोकतंत्र की नींव रखना – ताकि स्वतंत्र भारत एक मजबूत, न्यायपूर्ण और समान समाज बना सके।
भारत और जनता को लाभ
संविधान सभा की समितियों, विशेषकर प्रारूप समिति के कार्य से भारत को बहुत लाभ हुआ:
✅ 1. मजबूत और स्थायी संविधान मिला:
भारत का संविधान आज भी दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे विस्तृत संविधान है।
✅ 2. सभी नागरिकों को समान अधिकार:
संविधान ने जाति, धर्म, भाषा, लिंग के आधार पर भेदभाव को समाप्त कर दिया।
✅ 3. लोकतंत्र की नींव:
संविधान सभा ने भारत को एक गणराज्य (Republic) बनाया, जहाँ राष्ट्रपति सर्वोच्च होता है, न कि राजा।
✅ 4. न्याय की व्यवस्था:
हर व्यक्ति को कानून के सामने समान अधिकार, न्याय की गारंटी मिली।
✅ 5. बहुलता (Diversity) का सम्मान:
हर भाषा, धर्म, संस्कृति और समुदाय को सम्मान और स्वतंत्रता मिली।
कुछ आलोचनाएँ (हानियाँ)
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जनता की सीधी भागीदारी नहीं थी – संविधान सभा में जनता द्वारा सीधे चुने हुए सदस्य नहीं थे (बल्कि प्रांतीय विधायिकाओं द्वारा चुने गए थे)।
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कई समुदायों को कम प्रतिनिधित्व मिला – कुछ अल्पसंख्यक वर्गों की आवाज़ पूरी तरह नहीं सुनाई दी।
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ब्रिटिश प्रभाव ज़्यादा रहा – कई कानून ब्रिटिश ढांचे पर आधारित रहे, जो भारतीय संस्कृति से पूरी तरह मेल नहीं खाते थे।
निष्कर्ष (Conclusion)
भारत की संविधान सभा की समितियाँ विशेष रूप से प्रारूप समिति, भारतीय संविधान निर्माण की रीढ़ की हड्डी थीं। प्रारूप समिति ने बहुत ही सोच-समझकर, गहन अध्ययन और सभी वर्गों को ध्यान में रखकर संविधान तैयार किया।
इस संविधान ने न केवल भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया, बल्कि हर भारतीय को सम्मान, समानता, स्वतंत्रता और न्याय दिलाया। प्रारूप समिति का कार्य आज भी हमें प्रेरणा देता है कि किसी भी काम को जब सच्ची नीयत, समझदारी और सहयोग से किया जाए, तो वह इतिहास बन सकता है।
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