रेगुलेटिंग एक्ट, 1773: विस्तृत जानकारी
रेगुलेटिंग एक्ट, 1773, ब्रिटिश संसद द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण कानून था, जिसका उद्देश्य ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन को नियंत्रित करना और भारत में ब्रिटिश शासन को अधिक संगठित बनाना था। यह कानून ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में कंपनी के कामकाज पर पहली बार सीधा नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास था।
पृष्ठभूमि: यह कानून क्यों लाया गया?
18वीं शताब्दी के मध्य तक, ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने के साथ-साथ राजनीतिक शक्ति भी हासिल कर चुकी थी। प्लासी (1757) और बक्सर (1764) की लड़ाइयों के बाद बंगाल, बिहार और उड़ीसा में कंपनी का सीधा शासन हो गया था।
हालांकि, कंपनी की प्रशासनिक व्यवस्था कमजोर थी:
1. भ्रष्टाचार बढ़ रहा था – कंपनी के अधिकारी अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार में लिप्त थे।
2. आर्थिक संकट – कंपनी कर्ज में डूब गई थी और उसे ब्रिटिश सरकार से वित्तीय मदद मांगनी पड़ी।
3. अव्यवस्थित प्रशासन – बंगाल में न्याय और प्रशासनिक व्यवस्था कमजोर थी, जिससे स्थानीय जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।
इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए ब्रिटिश सरकार ने रेगुलेटिंग एक्ट, 1773 को लागू किया।
मुख्य प्रावधान
1. गवर्नर ऑफ बंगाल को गवर्नर-जनरल का दर्जा –
बंगाल के तत्कालीन गवर्नर वॉरेन हेस्टिंग्स को भारत का पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया।
मद्रास और बॉम्बे की प्रेसीडेंसियों को बंगाल के गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया।
गवर्नर-जनरल के साथ एक एग्जीक्यूटिव काउंसिल (4 सदस्य) बनाई गई, जो प्रशासनिक निर्णयों में मदद करती थी।
2. न्यायिक सुधार –
कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना (1774) की गई, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश होते थे।
यह अदालत अंग्रेज़ों और भारतीयों दोनों के लिए न्यायिक मामलों को देखती थी।
3. कंपनी के डायरेक्टर्स पर नियंत्रण –
ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों (डायरेक्टर्स) को हर साल ब्रिटिश सरकार को अपने कार्यों की रिपोर्ट देनी अनिवार्य कर दी गई।
कंपनी के अधिकारियों के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए।
4. कंपनी को संसद के प्रति जवाबदेह बनाया गया –
ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट किया कि भारत में शासन करना सिर्फ कंपनी का नहीं, बल्कि ब्रिटिश क्राउन (साम्राज्य) की भी जिम्मेदारी है।
उस दिन क्या हुआ था? (1773 का परिप्रेक्ष्य)
जब ब्रिटिश संसद में इस कानून पर चर्चा हुई, तो यह ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए एक बड़ा झटका था। कंपनी के कई निदेशक इसके खिलाफ थे, क्योंकि इससे उनके अधिकार सीमित हो गए थे। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे पारित किया और ईस्ट इंडिया कंपनी को मजबूरन इसे स्वीकार करना पड़ा।
इसके बाद, 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स कलकत्ता पहुंचे और भारत के पहले गवर्नर-जनरल का पदभार ग्रहण किया। इसी साल, कलकत्ता में पहला सुप्रीम कोर्ट भी स्थापित किया गया, जिसने ब्रिटिश कानून व्यवस्था को लागू करना शुरू किया।
महत्व और प्रभाव
ब्रिटिश नियंत्रण की शुरुआत – यह पहला कानून था, जिससे ब्रिटिश सरकार ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन पर नियंत्रण स्थापित किया।
आधुनिक प्रशासन की नींव – इस कानून ने भारत में एक केंद्रीकृत प्रशासन की नींव रखी, जिससे आगे चलकर चार्टर एक्ट (1833), भारत सरकार अधिनियम (1858) और अन्य सुधार हुए।
कानूनी व्यवस्था की शुरुआत – सुप्रीम कोर्ट की स्थापना से भारत में ब्रिटिश न्याय प्रणाली की शुरुआत हुई।
निष्कर्ष
रेगुलेटिंग एक्ट, 1773 भारतीय प्रशासन में ब्रिटिश हस्तक्षेप की पहली महत्वपूर्ण कड़ी थी। इसने भारत में गवर्नर-जनरल की संस्था, ब्रिटिश कानून व्यवस्था, और ब्रिटिश सरकार की सीधी भागीदारी को स्थापित किया। हालांकि, इस कानून में कई खामियां थीं, जिन्हें बाद के कानूनों द्वारा
सुधारा गया, लेकिन यह ब्रिटिश भारत की प्रशासनिक प्रणाली के विकास में एक ऐतिहासिक कदम था।
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