भारत के संविधान में प्रारूप समिति क्या होती है आसान भाषा में ?Drafting Committee of the Constitution of India

 भारत के संविधान में प्रारूप समिति: एक विस्तृत विवरण

भारत के संविधान में प्रारूप समिति क्या होती है आसान भाषा में ?Drafting Committee of the Constitution of India


भारत का संविधान हमारे देश का सर्वोच्च कानून है, जो नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों और सरकार की संरचना को निर्धारित करता है। इसे बनाने में कई समितियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण थी प्रारूप समिति। यह समिति संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए बनाई गई थी। इस लेख में हम प्रारूप समिति का गठन, उद्देश्य, कार्य, सदस्यों और इसके योगदान को विस्तार से समझेंगे।


प्रारूप समिति का गठन


संविधान सभा ने 29 अगस्त 1947 को प्रारूप समिति (Drafting Committee) का गठन किया। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करना था। संविधान सभा में कई अन्य समितियाँ भी थीं, लेकिन प्रारूप समिति को विशेष रूप से संविधान का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।


इस समिति का नेतृत्व डॉ. भीमराव अंबेडकर को सौंपा गया, जो इसके अध्यक्ष बनाए गए। डॉ. अंबेडकर को संविधान का मुख्य शिल्पकार माना जाता है।



प्रारूप समिति के सदस्य


प्रारूप समिति में कुल 7 सदस्य थे, जिनका चयन उनके ज्ञान, अनुभव और विधायी मामलों में विशेषज्ञता के आधार पर किया गया था। समिति के सदस्य इस प्रकार थे—


1. डॉ. भीमराव अंबेडकर (अध्यक्ष)

2. एन. गोपालस्वामी आयंगर

3. के.एम. मुंशी

4. टी.टी. कृष्णमाचारी (बाद में बी.एल. मित्तर के स्थान पर नियुक्त)

5. सैयद मोहम्मद सादुल्लाह

6. बिहारी लाल मित्तर (बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया, उनकी जगह टी.टी. कृष्णमाचारी आए)

7. डी.पी. खेतान (बाद में उनके निधन के बाद एन. माधव राव को शामिल किया गया)




डॉ. भीमराव अंबेडकर को उनके कानूनी ज्ञान और प्रशासनिक दक्षता के कारण प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


प्रारूप समिति का कार्य


प्रारूप समिति का मुख्य कार्य संविधान का मसौदा तैयार करना था, लेकिन इसके तहत कई अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी किए गए—


1. संविधान का प्रारूप तैयार करना – समिति ने विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन किया और भारतीय समाज की आवश्यकताओं के अनुसार एक मसौदा तैयार किया।


2. संविधान के विभिन्न भागों को व्यवस्थित करना – भारत एक विविधतापूर्ण देश है, इसलिए समिति को विभिन्न प्रावधानों को संतुलित और सुव्यवस्थित करना पड़ा।


3. संविधान के मसौदे पर चर्चा और संशोधन – संविधान के प्रारूप को बार-बार संशोधित किया गया और विभिन्न वर्गों की राय को ध्यान में रखते हुए इसमें बदलाव किए गए।


4. संविधान सभा में प्रस्तुत करना – समिति ने 4 नवंबर 1948 को संविधान सभा में मसौदा प्रस्तुत किया।



5. संविधान को अंतिम रूप देना – मसौदे पर लंबी चर्चा के बाद 26 नवंबर 1949 को इसे अपनाया गया।



संविधान निर्माण की प्रक्रिया


संविधान निर्माण में कुल 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे। इस दौरान प्रारूप समिति ने कई बार मसौदे में बदलाव किए और इसे संविधान सभा में प्रस्तुत किया।


संविधान निर्माण की प्रक्रिया को तीन मुख्य चरणों में बांटा जा सकता है—


1. पहला मसौदा (फरवरी 1948) – प्रारूप समिति ने संविधान का पहला मसौदा तैयार किया और इसे सार्वजनिक विचार-विमर्श के लिए प्रस्तुत किया।



2. संशोधित मसौदा (नवंबर 1948) – विभिन्न सुझावों को शामिल कर इसे फिर से प्रस्तुत किया गया।



3. अंतिम मसौदा (नवंबर 1949) – सभी संशोधनों और चर्चाओं के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकृत कर लिया गया।


संविधान के प्रमुख तत्व और प्रारूप समिति का योगदान


संविधान के कई महत्वपूर्ण भागों को प्रारूप समिति ने निर्धारित किया, जिनमें शामिल हैं—


1. संविधान की प्रस्तावना


प्रस्तावना भारतीय संविधान का सार है, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की बात कही गई है।


2. मौलिक अधिकार

संविधान में नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों का प्रावधान प्रारूप समिति द्वारा तैयार किया गया। इनमें स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार आदि शामिल हैं।


3. नीति निदेशक तत्व


प्रारूप समिति ने सामाजिक और आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए नीति निदेशक तत्वों को संविधान में जोड़ा।


4. संघीय ढांचा


भारत को एक संघीय राज्य के रूप में संरचित करने का निर्णय लिया गया, जिसमें केंद्र और राज्यों के अधिकार स्पष्ट रूप से विभाजित किए गए।


5. संविधान की भाषा


संविधान को हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में तैयार किया गया ताकि सभी नागरिक इसे समझ सकें।


6. संशोधन प्रक्रिया


संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को लचीला और कठोर दोनों रखा गया ताकि समय के अनुसार बदलाव किए जा सकें।



डॉ. भीमराव अंबेडकर की भूमिका


डॉ. अंबेडकर ने प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में असाधारण नेतृत्व दिखाया। उन्होंने संविधान के प्रत्येक प्रावधान पर गहन अध्ययन किया और यह सुनिश्चित किया कि संविधान सभी वर्गों के हितों की रक्षा करे।


उनके योगदान में शामिल हैं—


सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देना – दलितों, महिलाओं और अन्य वंचित वर्गों के लिए विशेष प्रावधान शामिल किए।


समानता और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना – जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव को खत्म करने के लिए कानूनी प्रावधान जोड़े।


लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत बनाना – संसदीय प्रणाली और मौलिक अधिकारों का समावेश किया।



डॉ. अंबेडकर का कहना था—

"संविधान केवल कागज़ का एक टुकड़ा नहीं है, यह हमारी राष्ट्रीय आकांक्षाओं का प्रतीक है।"


संविधान का अंगीकरण और प्रभाव


संविधान को 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे आधिकारिक रूप से लागू किया गया। इसी दिन भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया।


संविधान लागू होने के बाद—


भारत में लोकतंत्र स्थापित हुआ।


नागरिकों को मौलिक अधिकार मिले।


सरकार की शक्तियाँ और दायित्व स्पष्ट किए गए।


समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में ठोस कदम उठाए गए।


निष्कर्ष


प्रारूप समिति भारतीय संविधान के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण समिति थी। डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में इसने ऐसा संविधान तैयार किया जो न केवल उस समय की जरूरतों को पूरा करता था, बल्कि भविष्य में आने वाली चुनौतियों से निपटने में भी सक्षम था।


भारत का संविधान आज दुनिया का सबसे विस्तृत और लोकतांत्रिक संविधान माना जाता है। यह प्रारूप समिति की कड़ी मेहनत और दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि भारत में आज

 भी लोकतंत्र कायम है और नागरिकों को उनके अधिकार मिल रहे हैं।


इस प्रकार, प्रारूप समिति का योगदान न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला भी है।

नोट- आशा है आपको प्रारूप समिति के बारे मे अछे से समझ आया होगा यदि पोस्ट अछि लागि हो तो प्लीज शेयर जरूर करे थैंक्स धन्यवाद जय हिन्द आपका दिन शुभ हो 

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